कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूः मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।
कर्म में ही तुम्हारा अधिकार है. फल में कदापि नहीं । इसलिये कर्मों के फल का हेतु न बनते हुए अकर्मण्यता में भी आसक्त न होकर कर्म करो ।
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